भारतीय संसद की संरचना | Indian Parliament

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भारतीय संविधान में संसद (Parliament) का महत्वपूर्ण स्थान है, क्योंकि यह देश की विधायिका है, जो कानून बनाने, सरकार के कार्यों की निगरानी करने, और जनता के प्रति जवाबदेही सुनिश्चित करने का कार्य करती है। भारतीय संसद (Parliament) संविधान के तहत संघ की विधायिका के रूप में स्थापित की गई है, और यह संविधान के अनुच्छेद 79 से 122 तक के अंतर्गत वर्णित है।


भारतीय संसद (Parliament) की संरचना

भारतीय संसद (Parliament) को दो सदनों में विभाजित किया गया है, जिन्हें द्विसदनीय (Bicameral) प्रणाली कहा जाता है। इसके अंतर्गत संसद (Parliament) के दो प्रमुख घटक हैं:-


राज्य सभा (Council of States)


  • इसे उच्च सदन या उच्चायन भी कहा जाता है।

  • राज्य सभा संघ की परिषद होती है, जिसमें राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के प्रतिनिधि शामिल होते हैं।

  • राज्य सभा के कुल सदस्यों की अधिकतम संख्या 250 हो सकती है, जिनमें से 238 सदस्य राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के प्रतिनिधि होते हैं और 12 सदस्य राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत किए जाते हैं, जो साहित्य, विज्ञान, कला, या समाज सेवा के क्षेत्र में विशेष योग्यता रखते हैं।

  • राज्य सभा एक स्थायी सदन है, यानी इसे भंग नहीं किया जा सकता। इसके एक-तिहाई सदस्य हर दो साल में सेवानिवृत्त होते हैं और नए सदस्य चुने जाते हैं। सदस्यों का कार्यकाल 6 वर्ष का होता है।

लोक सभा (House of the People)


  • इसे निचला सदन या निम्नायन कहा जाता है।

  • लोक सभा सीधे जनता द्वारा चुनी जाती है और यह देश की सबसे बड़ी विधायी इकाई होती है।

  • लोक सभा के सदस्यों की अधिकतम संख्या 552 हो सकती है, जिनमें 530 सदस्य राज्यों से, 20 सदस्य केंद्रशासित प्रदेशों से, और 2 सदस्य एंग्लो-इंडियन समुदाय से होते हैं (राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत, लेकिन यह प्रावधान 2019 में समाप्त कर दिया गया)।

  • लोक सभा के सदस्यों का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है, लेकिन राष्ट्रपति इसे कार्यकाल समाप्त होने से पहले भंग कर सकते हैं।

संसद के प्रमुख कार्य


भारतीय संसद (Parliament) का कार्य देश की विधायिका के रूप में बहुत व्यापक है। इसके मुख्य कार्य इस प्रकार हैं:-


विधायी कार्य (Legislative Function)


  • संसद (Parliament) देश के लिए नए कानून बनाने का कार्य करती है। इसके तहत संसद विभिन्न विषयों पर कानून बना सकती है, जिनमें केंद्र सरकार और राज्यों के अधिकार क्षेत्रों के विषय शामिल होते हैं।

  • संसद (Parliament) तीन प्रकार के विधेयक पारित करती है: साधारण विधेयक, वित्तीय विधेयक, और संवैधानिक संशोधन विधेयक।

वित्तीय कार्य (Financial Function)


  • संसद (Parliament) को वित्तीय नियंत्रण का महत्वपूर्ण अधिकार प्राप्त है। केंद्र सरकार की कोई भी वित्तीय नीति या बजट संसद (Parliament) की अनुमति के बिना लागू नहीं हो सकता।

  • वित्तीय विधेयकों को केवल लोक सभा में पेश किया जा सकता है। राज्य सभा को इसमें कोई संशोधन करने का अधिकार नहीं है, लेकिन वह सुझाव दे सकती है।

  • संसद (Parliament) का अधिकार है कि वह सरकार के खर्चों की जांच और स्वीकृति करे।


कार्यपालिका की निगरानी (Control Over the Executive)


  • संसद (Parliament) कार्यपालिका (सरकार) के कार्यों पर निगरानी रखती है। यह विभिन्न प्रश्न, बहस और प्रस्तावों के माध्यम से सरकार से जवाबदेही सुनिश्चित करती है।

  • संसद (Parliament) सरकार के नीतिगत निर्णयों और योजनाओं की जांच करती है और उन्हें जनहित में लागू करने के लिए बाध्य करती है।

संविधान में संशोधन (Constitutional Amendment)


भारतीय संविधान संसद (Parliament) को यह अधिकार देता है कि वह संविधान में संशोधन कर सके। संवैधानिक संशोधन विधेयक संसद (Parliament) के दोनों सदनों में विशेष बहुमत से पारित होता है।


राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, और न्यायाधीशों की नियुक्ति में भागीदारी -


  • संसद (Parliament) राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव में भाग लेती है।

  • संसद (Parliament) के पास यह शक्ति है कि वह राष्ट्रपति के खिलाफ महाभियोग चला सकती है, अगर उन्होंने संविधान का उल्लंघन किया हो।

  • सर्वोच्च और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के खिलाफ भी संसद (Parliament) महाभियोग की प्रक्रिया कर सकती है।

संसद (Parliament) की प्रक्रियाएँ

सत्र (Sessions)

संसद (Parliament) एक वर्ष में तीन सत्रों में बैठती है: बजट सत्र (फरवरी-मार्च), मानसून सत्र (जुलाई-अगस्त), और शीतकालीन सत्र (नवंबर-दिसंबर)। राष्ट्रपति संसद (Parliament) का सत्र बुलाते हैं।


विधेयक की प्रक्रिया (Bill Procedure)

एक विधेयक तब तक कानून नहीं बनता, जब तक उसे संसद (Parliament) के दोनों सदनों द्वारा पारित नहीं किया जाता और राष्ट्रपति की सहमति नहीं मिल जाती।

साधारण विधेयकों और वित्त विधेयकों के लिए प्रक्रिया थोड़ी भिन्न होती है, लेकिन सामान्यत: यह तीन चरणों में होती है: प्रथम वाचन (First Reading), द्वितीय वाचन (Second Reading), और तृतीय वाचन (Third Reading)।


संसदीय समितियाँ (Parliamentary Committees)

संसद (Parliament) के कार्यों की दक्षता और प्रभावशीलता बढ़ाने के लिए विभिन्न स्थायी और तदर्थ समितियाँ गठित की जाती हैं। ये समितियाँ विधेयकों, सरकारी नीतियों और अन्य मुद्दों की समीक्षा करती हैं और संसद (Parliament) को अपनी सिफारिशें प्रस्तुत करती हैं।


संसद (Parliament) की शक्तियाँ और सीमाएँ

भारतीय संसद (Parliament) को व्यापक शक्तियाँ दी गई हैं, लेकिन इसके कुछ सीमाएँ भी हैं:-


  • संसद (Parliament) संविधान की मूल संरचना में कोई परिवर्तन नहीं कर सकती। यह सिद्धांत 1973 में केशवानंद भारती केस में सर्वोच्च न्यायालय ने निर्धारित किया।

  • संसद (Parliament) को यह अधिकार है कि वह संविधान में संशोधन करे, लेकिन ऐसा करते समय उसे संविधान के प्रावधानों का पालन करना होगा।

  • संसद (Parliament) की शक्तियों पर न्यायपालिका द्वारा न्यायिक समीक्षा का अधिकार होता है। न्यायपालिका यह सुनिश्चित करती है कि संसद (Parliament) के द्वारा बनाए गए कानून संविधान के अनुसार हों।


निष्कर्ष

भारतीय संसद (Parliament) देश की सर्वोच्च विधायी संस्था है और यह जनता के प्रतिनिधियों के माध्यम से कानून बनाने और सरकार की नीतियों पर निगरानी रखने का कार्य करती है। यह एक ऐसा मंच है, जहाँ विभिन्न मुद्दों पर चर्चा होती है और राष्ट्रीय नीतियों का निर्धारण किया जाता है। भारतीय संसद (Parliament) देश के लोकतांत्रिक प्रणाली का केंद्र बिंदु है, जहाँ कानून के माध्यम से देश की दिशा और विकास का मार्गदर्शन होता है।



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