अकबर (Akbar) (जलाल उद्दीन मोहम्मद अकबर) मुगल साम्राज्य के सबसे महान शासकों में से एक माने जाते हैं। उन्होंने 1556 से 1605 तक भारत पर शासन किया और उनकी नीति, प्रशासन, और धार्मिक सहिष्णुता के कारण वे भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। अकबर (Akbar) ने अपने शासनकाल में न केवल एक सुदृढ़ साम्राज्य का निर्माण किया, बल्कि भारतीय समाज, कला, संस्कृति और धर्म में भी क्रांति लाने का प्रयास किया।
प्रारंभिक जीवन
- अकबर (Akbar) का जन्म 15 अक्टूबर 1542 को सिंध के अमरकोट किले (वर्तमान में पाकिस्तान) में हुआ था।
- उनके पिता का नाम हुमायूं था, जो मुगल साम्राज्य के दूसरे सम्राट थे, और माता का नाम हमीदा बानो बेगम था।
- अकबर (Akbar) का प्रारंभिक जीवन संघर्षपूर्ण रहा क्योंकि उनके पिता हुमायूं को शेरशाह सूरी के खिलाफ लड़ाई में हार का सामना करना पड़ा, जिसके बाद वे निर्वासन में चले गए।
सिंहासन पर आरूढ़ होना
- 1556 में, जब अकबर (Akbar) केवल 13 वर्ष के थे, उनके पिता हुमायूं की मृत्यु हो गई। उस समय अकबर (Akbar) पंजाब के कलानौर में थे।
- बैरम खान, जो अकबर (Akbar) के संरक्षक और प्रमुख सलाहकार थे, ने उन्हें सिंहासन पर बैठाया और मुगल साम्राज्य की सुरक्षा के लिए पानीपत की दूसरी लड़ाई (1556) में अकबर (Akbar) के नाम पर लड़ाई लड़ी, जिसमें उन्होंने हिंदू राजा हेम चंद्र विक्रमादित्य (हेमू) को पराजित किया।
प्रशासनिक सुधार
अकबर (Akbar) का प्रशासन बहुत ही संगठित और कुशल था। उन्होंने कई महत्वपूर्ण सुधार किए जो मुगल साम्राज्य को सुदृढ़ बनाने में सहायक सिद्ध हुए:-
1-मनसबदारी प्रणाली: यह प्रशासनिक और सैन्य अधिकारियों को पद (मनसब) देने की प्रणाली थी, जो अकबर (Akbar) ने शुरू की थी। इस प्रणाली के तहत अधिकारी सैन्य और प्रशासनिक कार्यों को संभालते थे और उनकी स्थिति उनके मनसब के अनुसार तय होती थी।
2-दाह्शाला प्रणाली: अकबर (Akbar) ने भूमि राजस्व प्रणाली में सुधार किया, जिसे टोडरमल ने व्यवस्थित किया। इस प्रणाली में भूमि की पैमाइश और उपज के आधार पर कर निर्धारित किया जाता था।
3-प्रांतीय व्यवस्था: अकबर (Akbar) ने अपने साम्राज्य को सूबों (प्रांतों) में विभाजित किया और प्रत्येक सूबे में एक सूबेदार, एक दीवान और एक काजी नियुक्त किया।
धार्मिक नीति
अकबर (Akbar) की धार्मिक नीति उनकी सहिष्णुता और उदार दृष्टिकोण के कारण अत्यधिक प्रशंसा प्राप्त करती है:-
- सुलह-ए-कुल (सार्वजनिक शांति की नीति): अकबर (Akbar) ने सभी धर्मों के प्रति सहिष्णुता की नीति अपनाई। उन्होंने सभी धर्मों के लोगों को एक साथ लाने का प्रयास किया और धार्मिक भेदभाव को समाप्त किया।
- 1562 में, अकबर (Akbar) ने जजिया कर (गैर-मुस्लिमों पर लगाया जाने वाला कर) को समाप्त कर दिया।
- अकबर (Akbar) ने इबादतखाना नामक धार्मिक चर्चा का एक स्थान स्थापित किया, जहाँ विभिन्न धर्मों के विद्वान एकत्र होते थे और धर्म पर विचार-विमर्श करते थे।
- अकबर (Akbar) ने एक नए धर्म की स्थापना की, जिसे दीन-ए-इलाही कहा जाता है। यह धर्म सभी धर्मों के अच्छे पहलुओं को मिलाकर बनाया गया था, हालांकि इसे बहुत अधिक स्वीकार्यता नहीं मिली।
विजयों और विस्तार
अकबर (Akbar) ने अपने शासनकाल में कई महत्वपूर्ण सैन्य विजय प्राप्त कीं और मुगल साम्राज्य का विस्तार किया:-
- राजपूताना अभियान: अकबर (Akbar) ने राजस्थान के अधिकांश राजपूत राज्यों को अपने अधीन किया। चित्तौड़ और रणथंभौर जैसी किलों की विजय उनकी प्रमुख सैन्य सफलताओं में से एक थी।
- गुजरात और बंगाल पर अकबर (Akbar) का नियंत्रण मजबूत था और इन क्षेत्रों ने मुगल साम्राज्य की आर्थिक स्थिति को और सुदृढ़ किया।
- काबुल, कंधार और कश्मीर पर भी अकबर (Akbar) ने विजय प्राप्त की और इन्हें मुगल साम्राज्य का हिस्सा बनाया।
अकबर और राजपूत नीति
अकबर (Akbar) ने राजपूतों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध बनाए। उन्होंने राजपूत राजाओं से विवाह संबंध स्थापित किए और उन्हें मुगल दरबार में उच्च पद दिए। उदाहरण के लिए, अकबर (Akbar) ने राजा भारमल की बेटी जोधाबाई से विवाह किया, जो बाद में उनके बेटे जहांगीर की मां बनीं। राजपूतों के प्रति उनकी उदार नीति ने उन्हें मजबूत सैन्य और राजनीतिक समर्थन प्रदान किया।
कला, संस्कृति और साहित्य
अकबर (Akbar) ने कला और संस्कृति को बढ़ावा दिया:-
- उनके दरबार में प्रसिद्ध नवरत्न थे, जिनमें से बीरबल, तानसेन, और अबुल फजल जैसे विद्वान और कलाकार शामिल थे।
- अकबर (Akbar) ने हिंदू-मुस्लिम संस्कृति के मिलन का प्रयास किया और मुगल चित्रकला, संगीत, और स्थापत्य कला को प्रोत्साहित किया।
- अकबर (Akbar) के शासनकाल में फारसी भाषा साहित्य और कला के क्षेत्र में एक प्रमुख भाषा बन गई।
उत्तराधिकारी
अकबर (Akbar) का उत्तराधिकारी उनका पुत्र सलीम (जहांगीर) बना, जिन्होंने अकबर (Akbar) के बाद मुगल साम्राज्य की बागडोर संभाली। हालांकि सलीम के साथ अकबर के संबंधों में तनाव था, लेकिन अकबर (Akbar) ने अपने अंतिम समय में सलीम को अपना उत्तराधिकारी स्वीकार कर लिया।
मृत्यु
अकबर (Akbar) की मृत्यु 27 अक्टूबर 1605 को आगरा में हुई। उनकी मृत्यु के बाद उन्हें सिकंदरा में एक भव्य मकबरे में दफन किया गया, जो आज भी एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थल है।
अकबर का महत्व
अकबर (Akbar) भारतीय इतिहास में एक महान शासक के रूप में जाने जाते हैं। उनकी प्रशासनिक सुधारों, धार्मिक सहिष्णुता, और सांस्कृतिक योगदान ने मुगल साम्राज्य को नई ऊँचाइयों पर पहुँचाया। उनका शासन भारतीय उपमहाद्वीप में एकता और स्थिरता का प्रतीक माना जाता है। अकबर (Akbar) को उनके न्यायप्रियता और विभिन्न धर्मों के प्रति सहिष्णुता के लिए इतिहास में सम्मान के साथ याद किया जाता है।
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