महाकाव्य महाभारत के बारे में तथ्य | Mahabharat | Information About Mahabharat

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महाभारत भारतीय संस्कृति और साहित्य का सबसे महत्वपूर्ण और महान महाकाव्य है। इसे दुनिया के सबसे बड़े महाकाव्यों में से एक माना जाता है। महाभारत न केवल धार्मिक ग्रंथ है, बल्कि इसमें राजनीति, युद्ध, दर्शन, जीवन मूल्य और सामाजिक आदर्शों का वर्णन भी मिलता है। यहां महाभारत के कुछ महत्वपूर्ण तथ्य दिए जा रहे हैं:


1. लेखक-

महाभारत के लेखक महर्षि वेदव्यास माने जाते हैं। वेदव्यास ने महाभारत की रचना की, और इसे लिपिबद्ध करने का कार्य भगवान गणेश ने किया था। ऐसा कहा जाता है कि गणेश ने शर्त रखी थी कि वे लगातार लिखेंगे और वेदव्यास बिना रुके कहानी सुनाएंगे।


2. कथानक-

महाभारत का मुख्य कथानक कौरवों और पांडवों के बीच हुआ महान युद्ध कुरुक्षेत्र युद्ध है। यह युद्ध हस्तिनापुर के राज्य सिंहासन के लिए लड़ा गया था। इसमें धर्म, अधर्म, न्याय और अन्याय के बीच संघर्ष का वर्णन किया गया है।


3. अध्याय और श्लोक-

महाभारत में कुल 18 पर्व (अध्याय) हैं और इसमें लगभग 1 लाख श्लोक हैं। यह दुनिया का सबसे बड़ा महाकाव्य है और रामायण से लगभग 4 गुना बड़ा है। महाभारत का सबसे महत्वपूर्ण और प्रसिद्ध हिस्सा भगवद गीता है, जो कुरुक्षेत्र युद्ध के दौरान भगवान कृष्ण और अर्जुन के संवाद के रूप में प्रस्तुत है।


4. अवधि और समय-

महाभारत का समय और इसकी घटनाएँ प्राचीन भारत में घटित मानी जाती हैं, और माना जाता है कि यह द्वापर युग के अंत में घटित हुआ था। विद्वान महाभारत युद्ध को लगभग 3102 ई.पू. के आस-पास मानते हैं, हालांकि इसकी सटीकता को लेकर मतभेद हैं।


5. पात्र-

महाभारत में सैकड़ों पात्र हैं, जिनमें प्रमुख पात्रों में कौरव (100 भाई, जिनमें दुर्योधन प्रमुख है) और पांडव (पांच भाई - युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव) शामिल हैं। इसके अलावा, भगवान कृष्ण, भीष्म पितामह, द्रोणाचार्य, कर्ण, द्रौपदी, शकुनि, धृतराष्ट्र, विदुर, गांधारी आदि भी महाकाव्य के महत्वपूर्ण पात्र हैं।


6. महाभारत के पर्व (अध्याय)-

महाभारत को 18 पर्वों में विभाजित किया गया है, जिनमें कुछ प्रमुख पर्व इस प्रकार हैं:-

  1. आदि पर्व: महाभारत की शुरुआत, कौरवों और पांडवों का जन्म, और उनके प्रारंभिक जीवन की कहानी।
  2. सभापर्व: द्रौपदी का चीरहरण, जुए का खेल और पांडवों का वनवास।
  3. विराट पर्व: पांडवों का अज्ञातवास और विराट के राजा के यहाँ शरण।
  4. उद्योग पर्व: युद्ध की तैयारी और प्रयास किए गए समझौते।
  5. भीष्म पर्व: युद्ध की शुरुआत और भीष्म पितामह का नेतृत्व।
  6. द्रोण पर्व: द्रोणाचार्य का नेतृत्व और अभिमन्यु का वीरगति प्राप्त करना।
  7. शांति पर्व: युद्ध के बाद शांति और धर्म का उपदेश।
  8. स्वर्गारोहण पर्व: पांडवों का स्वर्गारोहण।


7. भगवद गीता-

महाभारत का सबसे महत्वपूर्ण और प्रसिद्ध हिस्सा भगवद गीता है। यह महाभारत के भीष्म पर्व के दौरान, अर्जुन और भगवान कृष्ण के बीच हुआ संवाद है। इसमें जीवन, धर्म, कर्म, भक्ति और मोक्ष के विषय में भगवान कृष्ण द्वारा दिए गए उपदेश शामिल हैं। इसे हिंदू धर्म का एक प्रमुख धार्मिक ग्रंथ माना जाता है।


8. युद्ध की अवधि-

महाभारत के अनुसार, कुरुक्षेत्र का युद्ध 18 दिनों तक चला था। यह युद्ध कौरवों और पांडवों के बीच लड़ा गया, जिसमें कई महान योद्धा मारे गए और अंत में पांडवों की विजय हुई।


9. संदेश और शिक्षाएँ-

महाभारत जीवन के हर पहलू पर शिक्षाएँ प्रदान करता है। यह धर्म (कर्तव्य), कर्म (कर्मफल), न्याय, अहिंसा, भाईचारा, नारी का सम्मान, राजनीति और नेतृत्व के बारे में गहन समझ देता है। महाभारत यह सिखाता है कि धर्म और सत्य की राह पर चलना ही जीवन का सबसे बड़ा कर्तव्य है।


10. धार्मिक और सांस्कृतिक महत्त्व-

महाभारत केवल एक कथा नहीं है, यह भारतीय संस्कृति, परंपराओं, मूल्यों और धार्मिक आदर्शों का भंडार है। यह विभिन्न धर्मों, विशेषकर हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण धार्मिक ग्रंथ माना जाता है। इसमें न्याय, नैतिकता और धर्म के साथ-साथ जीवन और मृत्यु की गहरी समझ दी गई है।


11. नैतिक द्वंद्व-

महाभारत के मुख्य विषयों में से एक नैतिक द्वंद्व है। इसमें दिखाया गया है कि सही और गलत के बीच संघर्ष कितना जटिल हो सकता है, और कभी-कभी धर्म के नाम पर भी युद्ध आवश्यक हो सकता है। यह कर्तव्य और नीतियों की कठिनाइयों को उजागर करता है।


12. महाभारत के अंत में परिणाम-

युद्ध के अंत में पांडवों की विजय हुई, लेकिन यह विजय उन्हें व्यक्तिगत रूप से कोई सुख नहीं दे सकी, क्योंकि वे अपने प्रियजनों और हजारों निर्दोष लोगों की मृत्यु से आहत थे। युधिष्ठिर को राजा बनाया गया, लेकिन अंततः उन्होंने भी राज्य का त्याग कर दिया और स्वर्गारोहण के लिए चले गए।


13. अन्य भाषाओं में अनुवाद-

महाभारत का अनुवाद दुनिया की कई भाषाओं में किया गया है। संस्कृत में मूल रूप से रचित यह महाकाव्य भारतीय साहित्य का महत्वपूर्ण हिस्सा है और इसे अंग्रेजी, हिंदी, तमिल, तेलुगु, बांग्ला, और कई अन्य भाषाओं में अनुवादित किया गया है।


14. महाभारत की विभिन्न कथाएँ-

महाभारत में मुख्य कथानक के अलावा कई अन्य उपकथाएँ भी हैं, जो जीवन के विभिन्न पहलुओं को दर्शाती हैं। इनमें सावित्री-सत्यवान, नल-दमयंती, शकुंतला-दुष्यंत की कथाएँ प्रमुख हैं।


महाभारत एक ऐसा महाकाव्य है, जो आज भी प्रासंगिक है और समाज, नैतिकता, धर्म और राजनीति पर गहरा प्रभाव डालता है।


कुरुक्षेत्र युद्ध, जिसे महाभारत का युद्ध भी कहा जाता है, का अनुमानित समय लगभग 3139 ईसा पूर्व माना जाता है। हालांकि, कुछ विद्वानों के अनुसार यह युद्ध 3102 ईसा पूर्व में हुआ था।


यह युद्ध कौरवों और पांडवों के बीच हुआ था और इसका मुख्य कारण हस्तिनापुर के सिंहासन का उत्तराधिकार था। युद्ध की अवधि कुल 18 दिन थी और यह हरियाणा राज्य में स्थित वर्तमान कुरुक्षेत्र नामक स्थान पर लड़ा गया था।


हालांकि, इसके सटीक समय को लेकर विभिन्न मत हैं, और यह तिथि पुराणों और ज्योतिषीय गणनाओं पर आधारित है।


कर्ण महाभारत के सबसे प्रमुख और वीर पात्रों में से एक थे। उन्हें महान योद्धा, उदार दानी, और साहसी व्यक्तित्व के रूप में जाना जाता है। उनका जीवन संघर्ष और त्याग से भरा हुआ था। कर्ण की पहचान उनके जन्म, उनके चरित्र और महाभारत के युद्ध में उनकी भूमिका के कारण अत्यंत महत्वपूर्ण है।


कर्ण का जीवन और पहचान:-


जन्म और परवरिश:-


कर्ण का जन्म कुंती के गर्भ से हुआ था, जब कुंती ने भगवान सूर्य को एक वरदान के रूप में आह्वान किया था। कुंती के अविवाहित होने के कारण, उन्होंने कर्ण को जन्म के तुरंत बाद नदी में बहा दिया।

कर्ण को एक सारथी (अधिरथ) और उसकी पत्नी (राधा) ने गोद लिया, इसलिए उनका नाम राधेय भी पड़ा। अधिरथ हस्तिनापुर के राजा धृतराष्ट्र के सारथी थे।


सूर्यपुत्र:-


कर्ण को "सूर्यपुत्र" कहा जाता है क्योंकि वह सूर्य देव के वरदान से पैदा हुए थे। कर्ण के शरीर पर जन्म से ही सूर्य की कवच और कुंडल थे, जो उन्हें अमर और अजेय बनाते थे।


शिक्षा और गुरु:-


कर्ण ने द्रोणाचार्य से शिक्षा प्राप्त करने की कोशिश की, लेकिन उनके निम्न जाति के कारण उन्हें मना कर दिया गया। इसके बाद, उन्होंने ब्राह्मण के वेश में परशुराम से शिक्षा ली, जो कि युद्धकला के अद्वितीय गुरु थे।

एक घटना के बाद, परशुराम को यह पता चल गया कि कर्ण क्षत्रिय थे, और उन्होंने क्रोधित होकर कर्ण को श्राप दिया कि जब भी वे अपने जीवन के सबसे कठिन समय में होंगे, वे अपनी विद्या भूल जाएंगे।


कौरवों के मित्र:-


कर्ण को उनके साहस और वीरता के कारण दुर्योधन ने अपना मित्र बना लिया। दुर्योधन ने कर्ण को अंगदेश का राजा बना दिया, जिससे कर्ण ने दुर्योधन के प्रति अपनी वफादारी निभाई और हमेशा कौरवों की ओर से युद्ध में लड़े।


कर्ण और दुर्योधन की दोस्ती महाभारत की सबसे प्रबल और गहरी मित्रताओं में से एक मानी जाती है। कर्ण ने दुर्योधन का साथ कभी नहीं छोड़ा, चाहे परिस्थितियाँ कितनी भी कठिन क्यों न रही हों।


महाभारत युद्ध में भूमिका:-


कर्ण महाभारत के कुरुक्षेत्र युद्ध में कौरवों के प्रमुख योद्धा थे। वे पांडवों के साथ विशेषकर अर्जुन के साथ उनके संघर्ष के लिए प्रसिद्ध हैं।

कर्ण और अर्जुन के बीच अद्वितीय प्रतिद्वंद्विता थी, जो अंततः कुरुक्षेत्र के मैदान में एक निर्णायक युद्ध में समाप्त हुई। इस युद्ध में अर्जुन ने कर्ण को मार डाला था।

कर्ण को महाभारत के युद्ध में कौरवों के कई योद्धाओं से अधिक शक्तिशाली माना गया, लेकिन उनके जीवन की त्रासदी और कर्मफल ने उन्हें हमेशा संघर्षरत रखा।


कवच और कुंडल:-


कर्ण के पास जन्म से एक कवच और कुंडल थे, जो उन्हें अजेय बनाते थे। लेकिन युद्ध से पहले, इंद्र देव ने एक ब्राह्मण का रूप धारण कर कर्ण से उनके कवच और कुंडल मांग लिए, और कर्ण ने अपने दानशील स्वभाव के कारण उन्हें दे दिया। इस दान के बाद, कर्ण युद्ध में कमजोर हो गए।


नैतिक संघर्ष:-


कर्ण का जीवन नैतिक संघर्षों से भरा था। उन्हें अपने जन्म की सच्चाई युद्ध के दौरान ही पता चली, जब कुंती ने उन्हें बताया कि वे पांडवों के सबसे बड़े भाई हैं। लेकिन कर्ण ने कौरवों के प्रति अपनी वफादारी बनाए रखी और पांडवों से युद्ध करने का निर्णय किया, भले ही वे उनके अपने भाई थे।


उदारता:-


कर्ण को उनकी उदारता के लिए भी जाना जाता है। उन्हें "दानी कर्ण" कहा जाता है क्योंकि वे किसी भी ब्राह्मण या याचक को खाली हाथ नहीं लौटाते थे। उनकी यह उदारता उनकी पहचान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा थी।


कर्ण की मृत्यु:-


कर्ण की मृत्यु महाभारत के 17वें दिन अर्जुन के हाथों हुई। युद्ध के दौरान कर्ण का रथ कीचड़ में धँस गया, और जब कर्ण ने अपने रथ का पहिया निकालने का प्रयास किया, तब अर्जुन ने भगवान कृष्ण के आदेश पर कर्ण पर बाण चलाया और उनका वध कर दिया।


कर्ण की विरासत:-


कर्ण को महाभारत का सबसे दुखद पात्र माना जाता है। उनका जीवन संघर्ष, त्याग, और त्रासदी का प्रतीक है। वे एक ऐसे योद्धा थे, जिनकी वीरता और साहस आज भी प्रेरणा का स्रोत है। महाभारत में उनका व्यक्तित्व कई तरह के मानवीय भावनाओं, संघर्षों, और कर्तव्यों का प्रतिनिधित्व करता है।


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