भारतीय संविधान: एक परिचय | Indian Constitution | Introduction of Indian Constitution

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भारतीय संविधान: एक परिचय


भारतीय संविधान भारत का सर्वोच्च कानून है, जो देश के शासन की संरचना और कार्यप्रणाली को निर्धारित करता है। यह दुनिया का सबसे विस्तृत लिखित संविधान है और 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ, जिसे हम गणतंत्र दिवस के रूप में मनाते हैं। भारतीय संविधान ने भारत को एक लोकतांत्रिक गणराज्य के रूप में स्थापित किया और नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा की व्यवस्था की।


संविधान की प्रस्तावना?


भारतीय संविधान की प्रस्तावना (Preamble) संविधान का महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो इसके उद्देश्यों और मूल सिद्धांतों को स्पष्ट रूप से वर्णित करती है। इसे संविधान की आत्मा भी कहा जाता है, क्योंकि यह संविधान के मूलभूत उद्देश्यों और दर्शन को व्यक्त करती है।


संविधान की प्रस्तावना निम्नलिखित है:-


“हम, भारत के लोग, भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व-संपन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए, तथा उसके समस्त नागरिकों को:-


  • न्याय – सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक;
  • स्वतंत्रता – विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की;
  • समानता – प्रतिष्ठा और अवसर की;
  • बंधुता – व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखंडता सुनिश्चित करने वाली बंधुता;

सुनिश्चित करने के लिए दृढ़ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज दिनांक 26 नवंबर 1949 ई. को इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।”


प्रस्तावना के मुख्य तत्त्व


प्रभुत्व-संपन्न (Sovereign)


भारत एक स्वतंत्र और सर्वोच्च राष्ट्र है। यह किसी अन्य देश या शक्ति के अधीन नहीं है। भारत अपने आंतरिक और बाहरी मामलों में स्वतंत्र रूप से निर्णय ले सकता है।


समाजवादी (Socialist)


संविधान में समाजवाद का सिद्धांत 42वें संशोधन (1976) के माध्यम से जोड़ा गया। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि देश के संसाधनों का समान वितरण हो और समाज के कमजोर वर्गों को लाभ पहुंचे। यह आर्थिक और सामाजिक न्याय पर बल देता है।


पंथनिरपेक्ष (Secular)


भारत एक पंथनिरपेक्ष देश है, जहां सभी धर्मों को समान अधिकार और सम्मान प्राप्त है। राज्य किसी विशेष धर्म का समर्थन नहीं करता और नागरिकों को अपने धर्म का पालन करने की पूरी स्वतंत्रता है।


लोकतांत्रिक (Democratic)


भारत का शासन लोकतांत्रिक प्रणाली पर आधारित है, जहां जनता द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधि देश की सरकार चलाते हैं। यहां हर वयस्क नागरिक को मतदान का अधिकार है और यह सरकार जनता की इच्छाओं के अनुसार कार्य करती है।


गणराज्य (Republic)


भारत एक गणराज्य है, जिसका मतलब है कि यहाँ का प्रमुख व्यक्ति (राष्ट्रपति) जनता द्वारा निर्वाचित होता है, और यह पद वंशानुगत नहीं होता।


न्याय (Justice)


संविधान सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय की गारंटी देता है। इसका मतलब है कि हर नागरिक को समान अवसर मिलेंगे और किसी के साथ भेदभाव नहीं होगा।


स्वतंत्रता (Liberty)


संविधान प्रत्येक नागरिक को विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता प्रदान करता है, ताकि हर व्यक्ति अपनी इच्छा के अनुसार जी सके और अपनी राय व्यक्त कर सके।


समानता (Equality)


संविधान कानून के समक्ष सभी नागरिकों को समानता का अधिकार देता है। किसी भी नागरिक के साथ जाति, धर्म, लिंग या जन्मस्थान के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता।


बंधुता (Fraternity)


बंधुता का अर्थ है एकता और भाईचारा, जो व्यक्ति की गरिमा और देश की एकता एवं अखंडता को बनाए रखने में सहायक है।


प्रस्तावना का महत्व


  • संविधान की प्रस्तावना भारत के संविधान के उद्देश्य और दर्शन को व्यक्त करती है। यह स्पष्ट करती है कि भारतीय राज्य किस प्रकार के समाज का निर्माण करना चाहता है।
  • प्रस्तावना नागरिकों के अधिकारों और कर्तव्यों के बारे में भी जानकारी देती है।
  • यह संविधान के उन मूल सिद्धांतों को परिभाषित करती है, जिन पर भारत की शासन प्रणाली आधारित है।
  • न्यायालय का दृष्टिकोण- 1960 के दशक में, बेरूबारी केस में, सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि प्रस्तावना संविधान का हिस्सा नहीं है। लेकिन 1973 के केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य मामले में, सर्वोच्च न्यायालय ने यह फैसला सुनाया कि प्रस्तावना संविधान का अभिन्न हिस्सा है और इसे संशोधित किया जा सकता है, लेकिन संविधान की बुनियादी संरचना को बदला नहीं जा सकता।


संविधान सभा और निर्माण प्रक्रिया


भारतीय संविधान का निर्माण संविधान सभा के माध्यम से किया गया, जिसकी स्थापना 9 दिसंबर 1946 को हुई थी। संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ. राजेंद्र प्रसाद थे, जबकि डॉ. भीमराव अंबेडकर ने संविधान निर्माण की प्रारूप समिति के अध्यक्ष के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। अंबेडकर को 'भारतीय संविधान के निर्माता' के रूप में भी जाना जाता है। इस प्रक्रिया में 2 साल, 11 महीने और 18 दिन का समय लगा। संविधान को तैयार करने में 395 अनुच्छेद, 22 भाग, और 8 अनुसूचियाँ शामिल थीं, जो अब संशोधित होकर 470 अनुच्छेद, 25 भाग, और 12 अनुसूचियों में विभाजित हैं।


संविधान की मुख्य विशेषताएं


भारतीय संविधान की कुछ प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:-


संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य: संविधान के प्रस्तावना में भारत को एक "संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य" के रूप में परिभाषित किया गया है। इसका अर्थ है कि भारत एक स्वतंत्र राष्ट्र है, जहाँ समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता का आदर किया जाता है और देश की शासन प्रणाली लोकतांत्रिक है।


संघात्मक व्यवस्था (Federal Structure): भारतीय संविधान संघीय प्रणाली को अपनाता है, जिसमें केंद्र और राज्यों के बीच शक्तियों का विभाजन किया गया है। इसमें तीन सूचियाँ (संघ सूची, राज्य सूची और समवर्ती सूची) हैं, जो केंद्र और राज्यों के अधिकारों को परिभाषित करती हैं।


मौलिक अधिकार (Fundamental Rights): भारतीय संविधान में नागरिकों को छह मौलिक अधिकार दिए गए हैं, जो उनके जीवन और स्वतंत्रता की सुरक्षा करते हैं। ये अधिकार हैं - (i) समानता का अधिकार, (ii) स्वतंत्रता का अधिकार, (iii) शोषण के खिलाफ अधिकार, (iv) धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार, (v) सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकार, और (vi) संवैधानिक उपचार का अधिकार।


मौलिक कर्तव्य (Fundamental Duties): संविधान में 42वें संशोधन (1976) के तहत 11 मौलिक कर्तव्यों को शामिल किया गया है, जिनका उद्देश्य नागरिकों में नैतिक और सामाजिक जिम्मेदारियों का बोध कराना है।


निर्देशात्मक सिद्धांत (Directive Principles of State Policy): यह सिद्धांत राज्य को यह निर्देश देते हैं कि वह नागरिकों के कल्याण के लिए कार्य करे। ये सिद्धांत सरकार के लिए नीतिगत दिशा-निर्देश के रूप में कार्य करते हैं, जैसे सामाजिक और आर्थिक न्याय, समान वेतन, शिक्षा और स्वास्थ्य का अधिकार।


संविधान का लचीलापन और कठोरता: भारतीय संविधान को संशोधित करने की प्रक्रिया लचीली और कठोर दोनों है। इसके कुछ भागों को साधारण बहुमत से संशोधित किया जा सकता है, जबकि अन्य महत्वपूर्ण भागों को संशोधन के लिए विशेष बहुमत की आवश्यकता होती है।


भारतीय संविधान का महत्व


भारतीय संविधान केवल कानून का दस्तावेज़ नहीं है, बल्कि यह देश के नागरिकों के लिए एक सामाजिक अनुबंध है। यह देश में लोकतंत्र, समानता, न्याय, स्वतंत्रता और बंधुत्व को सुनिश्चित करता है। संविधान ने भारत को एक संगठित और सशक्त राष्ट्र के रूप में उभरने में मदद की है, जहाँ विभिन्न भाषाओं, संस्कृतियों और धर्मों के लोग मिल-जुलकर रहते हैं।


संविधान भारतीय गणराज्य की आत्मा है, जो न केवल वर्तमान पीढ़ियों के लिए, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी दिशा प्रदान करता रहेगा।


संविधान सभा के सदस्य?


भारतीय संविधान सभा के सदस्य वे महान व्यक्तित्व थे, जिन्होंने भारतीय संविधान का निर्माण किया। ये सदस्य विभिन्न क्षेत्रों, जातियों, धर्मों, और राजनीतिक पृष्ठभूमियों से आए थे, ताकि संविधान सभी भारतीयों का प्रतिनिधित्व कर सके। संविधान सभा में कुल 299 सदस्य थे, जिनमें से 15 महिलाएं थीं। संविधान सभा के प्रमुख सदस्य और उनके योगदान इस प्रकार हैं:


1. डॉ. भीमराव अंबेडकर


भूमिका: संविधान सभा की मसौदा समिति (Drafting Committee) के अध्यक्ष।


योगदान: डॉ. अंबेडकर को 'भारतीय संविधान का निर्माता' कहा जाता है। उन्होंने संविधान का मसौदा तैयार किया और मौलिक अधिकारों, सामाजिक न्याय, और दलितों के उत्थान के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।


2. पंडित जवाहरलाल नेहरू


भूमिका: संविधान सभा के महत्वपूर्ण सदस्य और भारत के प्रथम प्रधानमंत्री।


योगदान: पंडित नेहरू ने संविधान सभा में कई महत्वपूर्ण प्रस्ताव पेश किए, जैसे कि उद्देश्य प्रस्ताव (Objectives Resolution), जो भारतीय संविधान के मूल सिद्धांतों की आधारशिला बना।


3. सरदार वल्लभभाई पटेल


भूमिका: संविधान सभा में महत्वपूर्ण सदस्य और देश के पहले उपप्रधानमंत्री।


योगदान: पटेल ने संघीय ढांचे को तैयार करने और देश की एकता और अखंडता को बनाए रखने में प्रमुख भूमिका निभाई। वे संघ शक्ति समिति और मौलिक अधिकार समिति के अध्यक्ष थे।


4. डॉ. राजेंद्र प्रसाद


भूमिका: संविधान सभा के अध्यक्ष।


योगदान: डॉ. प्रसाद ने संविधान सभा की कार्यवाहियों का सफलतापूर्वक संचालन किया और संविधान को अंतिम रूप देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वे भारत के पहले राष्ट्रपति भी बने।


5. मौलाना अबुल कलाम आजाद


भूमिका: संविधान सभा के प्रमुख सदस्य और देश के पहले शिक्षा मंत्री।


योगदान: मौलाना आजाद ने शिक्षा, सांप्रदायिक सद्भाव और राष्ट्रीय एकता के मुद्दों पर विशेष ध्यान दिया। उन्होंने धर्मनिरपेक्षता और शैक्षिक सुधारों के लिए काम किया।


6. के.एम. मुंशी


भूमिका: संविधान सभा के प्रमुख सदस्य और मसौदा समिति के सदस्य।


योगदान: के.एम. मुंशी ने संविधान के कई अनुच्छेदों के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, खासकर मौलिक अधिकारों और संवैधानिक उपचारों से संबंधित प्रावधानों में।


7. एच.सी. मुखर्जी


भूमिका: संविधान सभा के उपाध्यक्ष।


योगदान: उन्होंने संविधान सभा की कार्यवाहियों में संयम और संतुलन बनाए रखा। वे अल्पसंख्यक हितों के प्रति संवेदनशील थे और उनके अधिकारों की रक्षा के लिए कार्यरत रहे।


8. भीजू पटनायक


भूमिका: संविधान सभा के सदस्य।


योगदान: उड़ीसा के प्रतिनिधि के रूप में, पटनायक ने संविधान में सामाजिक और आर्थिक न्याय की जरूरत पर बल दिया। वे भविष्य में उड़ीसा के मुख्यमंत्री भी बने।


9. महावीर त्यागी


भूमिका: संविधान सभा के सदस्य।


योगदान: उन्होंने विशेष रूप से भूमि सुधार और किसानों के अधिकारों से संबंधित मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया। वे संविधान सभा में जमींदारी प्रथा के उन्मूलन के पक्षधर थे।


10. गोपीनाथ बोरदोलोई


भूमिका: असम से संविधान सभा के सदस्य और असम के मुख्यमंत्री।


योगदान: बोरदोलोई ने पूर्वोत्तर राज्यों के प्रतिनिधित्व और उनके अधिकारों की रक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके प्रयासों से असम और अन्य पूर्वोत्तर राज्यों के मुद्दे संविधान में समाहित किए गए।


11. जयप्रकाश नारायण


भूमिका: संविधान सभा के सदस्य।


योगदान: उन्होंने समाजवाद और गरीबों के हितों की पैरवी की। जयप्रकाश नारायण ने समतामूलक समाज के निर्माण की आवश्यकता पर जोर दिया और संविधान में सामाजिक न्याय के प्रावधानों का समर्थन किया।


12. पर्वीन मुजफ्फर कौर


भूमिका: पंजाब से महिला प्रतिनिधि।


योगदान: महिला अधिकारों की आवाज़ उठाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने संविधान में महिलाओं की समानता और शिक्षा के अधिकार के लिए काम किया।


13. सरोजिनी नायडू


भूमिका: संविधान सभा की सदस्य और प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी।


योगदान: सरोजिनी नायडू ने महिला अधिकारों और सामाजिक न्याय के मुद्दों पर विशेष ध्यान दिया। वे भारतीय महिलाओं के लिए प्रेरणास्रोत बनीं और उनकी आवाज़ संविधान सभा में मुखर थी।


14. वी.टी. कृष्णमाचारी


भूमिका: मसौदा समिति के सदस्य।


योगदान: उन्होंने संविधान के आर्थिक और प्रशासनिक ढांचे पर महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनके विचार भारतीय संघीय ढांचे और केंद्र-राज्य संबंधों के निर्माण में सहायक रहे।


15. कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी


भूमिका: संविधान सभा के प्रमुख सदस्य।


योगदान: मुंशी ने हिंदू कोड बिल और भूमि सुधारों के मुद्दों पर संविधान में महत्वपूर्ण योगदान दिया।


महिला सदस्य:


संविधान सभा में 15 महिलाएँ थीं, जिन्होंने महिलाओं के अधिकारों और समानता की दिशा में कार्य किया। इनमें प्रमुख थीं:-


हंसा मेहता: महिला अधिकारों की प्रबल समर्थक।


बेगम ऐजाज़ रसूल: मुस्लिम महिलाओं का प्रतिनिधित्व।


दुर्गाबाई देशमुख: शिक्षा और महिला सशक्तिकरण में योगदान।


संविधान के प्रमुख संशोधन




भारतीय संविधान को समय-समय पर संशोधित किया गया है ताकि बदलते सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक परिस्थितियों के अनुरूप इसे ढाला जा सके।  इनमें 42वां संशोधन (1976) और 44वां संशोधन (1978) प्रमुख हैं, जिसने संविधान के कई महत्वपूर्ण प्रावधानों में बदलाव किए। 73वां और 74वां संशोधन पंचायतों और नगरपालिकाओं को संवैधानिक दर्जा प्रदान करने के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण था।  संविधान के अनुच्छेद 368 के तहत संशोधन की प्रक्रिया को निर्धारित किया गया है, जो इसे लचीला और कठोर दोनों बनाता है। संविधान में अब तक 105 से अधिक संशोधन किए जा चुके हैं। कुछ महत्वपूर्ण संविधान संशोधन निम्नलिखित हैं:-


1. पहला संविधान संशोधन (1951)

पहला संशोधन संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) में किया गया था, जो कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से संबंधित है। यह संशोधन भूमि सुधार और संपत्ति के अधिकारों के संदर्भ में भी था। इसके तहत कुछ कानूनों को न्यायिक समीक्षा से बाहर रखा गया और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर 'समाज की सुरक्षा' जैसे प्रतिबंध लगाए गए।


2. 42वां संविधान संशोधन (1976)

इसे "मिनी संविधान" भी कहा जाता है, क्योंकि इसने संविधान के कई महत्वपूर्ण प्रावधानों में बदलाव किए। इस संशोधन के तहत संविधान की प्रस्तावना में 'समाजवादी' और 'धर्मनिरपेक्ष' शब्द जोड़े गए और 'संप्रभु लोकतांत्रिक गणराज्य' को 'समाजवादी धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य' कर दिया गया। इसने मौलिक कर्तव्यों को भी संविधान में शामिल किया और न्यायपालिका की शक्तियों को सीमित किया।


3. 44वां संविधान संशोधन (1978)

यह संशोधन 42वें संशोधन के कुछ प्रावधानों को पलटने के लिए किया गया था। इसने आपातकाल की स्थिति में मौलिक अधिकारों के निलंबन पर रोक लगाई और संपत्ति के अधिकार को मौलिक अधिकारों की सूची से हटा दिया, जिसे अब कानूनी अधिकार के रूप में रखा गया है।


4. 61वां संविधान संशोधन (1989)

इस संशोधन के तहत मतदाता की आयु 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष कर दी गई। यह युवा पीढ़ी को चुनावी प्रक्रिया में शामिल करने के उद्देश्य से किया गया था, जिससे लोकतंत्र को और सशक्त बनाया जा सके।


5. 73वां संविधान संशोधन (1992)

यह संशोधन पंचायतों को संवैधानिक दर्जा देने के लिए किया गया था। इसके तहत पंचायत राज संस्थाओं को स्थानीय शासन का एक महत्वपूर्ण अंग माना गया और इनके लिए नियमित चुनाव कराने की व्यवस्था की गई। इसके साथ ही महिलाओं और अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षण भी लागू किया गया।


6. 74वां संविधान संशोधन (1992)

इस संशोधन के माध्यम से नगर पालिकाओं को संवैधानिक दर्जा दिया गया। इसके तहत शहरी स्थानीय निकायों को सशक्त करने और शहरी क्षेत्रों के विकास के लिए नगर पालिकाओं को वित्तीय और प्रशासनिक स्वायत्तता प्रदान की गई।


7. 86वां संविधान संशोधन (2002)

यह संशोधन शिक्षा के अधिकार से संबंधित है। इसके तहत 6 से 14 वर्ष की आयु के सभी बच्चों के लिए शिक्षा का अधिकार एक मौलिक अधिकार बना दिया गया। अनुच्छेद 21A के तहत यह सुनिश्चित किया गया कि बच्चों को निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा प्राप्त हो।


8. 97वां संविधान संशोधन (2011)

इस संशोधन ने सहकारी समितियों को संवैधानिक दर्जा दिया। इसके तहत सहकारी समितियों के गठन और उनके कामकाज में सुधार के लिए प्रावधान किए गए, ताकि उनके कामकाज को स्वायत्त और लोकतांत्रिक ढंग से संचालित किया जा सके।


9. 99वां संविधान संशोधन (2014)

इस संशोधन के तहत राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) का गठन किया गया, जो उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए था। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इस संशोधन को असंवैधानिक करार देते हुए इसे रद्द कर दिया।


10. 101वां संविधान संशोधन (2016)

यह संशोधन वस्तु और सेवा कर (GST) से संबंधित है। इसके माध्यम से भारत में एकल कर प्रणाली लागू की गई, जिसमें विभिन्न अप्रत्यक्ष करों को समाप्त करके एक समेकित कर प्रणाली बनाई गई। यह आर्थिक सुधार के लिए एक महत्वपूर्ण कदम था।


11. 103वां संविधान संशोधन (2019)

यह संशोधन आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (EWS) के लिए शैक्षणिक संस्थानों और सरकारी नौकरियों में 10% आरक्षण प्रदान करता है। यह आरक्षण अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC), अनुसूचित जाति (SC), और अनुसूचित जनजाति (ST) से अलग आर्थिक आधार पर दिया गया।


12. 105वां संविधान संशोधन (2021)

यह संशोधन राज्यों को यह अधिकार प्रदान करता है कि वे अपने स्वयं के पिछड़ा वर्ग (OBC) की सूची तैयार कर सकें और उस सूची के आधार पर आरक्षण प्रदान कर सकें। इससे राज्यों को सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने की दिशा में अधिक स्वायत्तता मिली।


निष्कर्ष

संविधान के ये संशोधन भारतीय लोकतंत्र और शासन प्रणाली को समय के साथ समायोजित और सशक्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। भारतीय संविधान लचीला और कठोर दोनों है, जो इसे एक गतिशील दस्तावेज बनाता है, जो समय-समय पर समाज और देश की आवश्यकताओं के अनुरूप परिवर्तित किया जा सकता है।


भारतीय संविधान से जुड़े कुछ सवाल और उनके जवाबः-


  • भारतीय संविधान को संविधान सभा ने 26 नवंबर, 1949 को अपनाया था और यह 26 जनवरी, 1950 को लागू हुआ था। 
  • संविधान की मूल कॉपी को प्रेम बिहारी रायज़ादा ने लिखा था. उन्होंने इसके लिए कोई शुल्क नहीं लिया और हर पन्ने पर अपना नाम लिखा था।
  • भारतीय संविधान में 22 भाग, 395 अनुच्छेद, और 12 अनुसूचियां हैं।
  • संविधान की प्रस्तावना एक संक्षिप्त परिचयात्मक वक्तव्य है जो दस्तावेज़ के मार्गदर्शक सिद्धांतों और उद्देश्य को रेखांकित करती है।
  • संविधान के अनुच्छेद 26 के मुताबिक, भारत के नागरिकों और विदेशियों को धार्मिक मामलों के प्रबंधन की आज़ादी है। 
  • संविधान के अनुच्छेद 32 में संवैधानिक उपचार का अधिकार (उच्चतम न्यायालय) का ज़िक्र है। 
  • संविधान के अनुच्छेद 226 में संवैधानिक उपचार का अधिकार (उच्च न्यायालय) का ज़िक्र है।


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