संविधान सभा की भूमिका | Indian Constitution

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संविधान सभा की भूमिका


भारतीय संविधान (Indian Constitution) के निर्माण में संविधान सभा की महत्वपूर्ण भूमिका थी। यह सभा स्वतंत्र भारत के लिए एक संवैधानिक ढांचा तैयार करने के उद्देश्य से गठित की गई थी। संविधान सभा ने भारतीय संविधान का मसौदा तैयार किया, जो एक स्वतंत्र, लोकतांत्रिक, और धर्मनिरपेक्ष गणराज्य की नींव रखने में सहायक बना। संविधान सभा का कार्यकाल 9 दिसंबर 1946 से 24 जनवरी 1950 तक रहा। इस दौरान संविधान सभा ने संविधान निर्माण के अलावा भी कई महत्वपूर्ण जिम्मेदारियों का निर्वहन किया।


1. संविधान का मसौदा तैयार करना

संविधान सभा की सबसे महत्वपूर्ण भूमिका भारतीय संविधान (Indian Constitution) का मसौदा तैयार करना था। संविधान निर्माण की प्रक्रिया में कई चरण थे, जिसमें प्रारंभिक विचार-विमर्श से लेकर मसौदा समिति द्वारा प्रस्तावित मसौदे पर गहन चर्चा शामिल थी। संविधान सभा ने भारतीय समाज की विविधताओं, लोकतांत्रिक मूल्यों, और सामाजिक न्याय की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए संविधान के प्रत्येक अनुच्छेद पर गंभीर विचार किया।


2. संविधान निर्माण की समितियों का गठन

संविधान सभा के तहत विभिन्न समितियाँ बनाई गई थीं, जिन्होंने अलग-अलग विषयों पर काम किया। सबसे महत्वपूर्ण समिति मसौदा समिति (Drafting Committee) थी, जिसके अध्यक्ष डॉ. भीमराव अंबेडकर थे। अन्य प्रमुख समितियाँ थीं:-


  1. संघ शक्ति समिति (Union Powers Committee) - पंडित जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में।
  2. संघीय संविधान समिति (Federal Constitution Committee)।
  3. मौलिक अधिकार समिति (Fundamental Rights Committee) - सरदार वल्लभभाई पटेल की अध्यक्षता में।

इन समितियों का काम संविधान (Constitution) के अलग-अलग पहलुओं पर सुझाव देना और संविधान को तैयार करना था। मसौदा समिति ने विभिन्न रिपोर्टों के आधार पर संविधान का अंतिम मसौदा तैयार किया।


3. लोकतांत्रिक मूल्यों का प्रतिपादन

संविधान सभा ने भारतीय लोकतंत्र के मौलिक सिद्धांतों की नींव रखी। इसने भारतीय समाज को एक समतामूलक, धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक ढांचे में ढालने का कार्य किया। भारतीय संविधान में नागरिकों के मौलिक अधिकारों, कर्तव्यों और राज्य के नीति-निर्देशक तत्वों का समावेश किया गया, जिससे एक न्यायपूर्ण और समतामूलक समाज का निर्माण हो सके। संविधान सभा ने सुनिश्चित किया कि संविधान (Indian Constitution) में हर व्यक्ति को समान अधिकार मिले, चाहे उसकी जाति, धर्म, लिंग या आर्थिक स्थिति कोई भी हो।


4. मौलिक अधिकारों की सुरक्षा

संविधान सभा ने भारतीय नागरिकों के लिए मौलिक अधिकारों को सुनिश्चित किया, जो प्रत्येक व्यक्ति की गरिमा और स्वतंत्रता की रक्षा करते हैं। संविधान सभा ने इन अधिकारों को संविधान (Indian Constitution) के अंतर्गत लागू करने पर जोर दिया और न्यायपालिका को यह अधिकार दिया कि वह इन अधिकारों का उल्लंघन होने पर हस्तक्षेप कर सके। मौलिक अधिकार जैसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, समानता का अधिकार, धार्मिक स्वतंत्रता और व्यक्तिगत स्वतंत्रता संविधान (Indian Constitution) का मूल आधार बने।


5. संघीय ढांचे की स्थापना

भारत जैसे विशाल और विविधता वाले देश में शासन व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने के लिए संविधान सभा ने संघीय ढांचे (Federal Structure) को अपनाया। इसने केंद्र और राज्यों के बीच शक्तियों का विभाजन किया, जिससे राज्य और केंद्र सरकारें अपने-अपने अधिकार क्षेत्र में काम कर सकें। संघीय ढांचे में तीन सूचियाँ बनाई गईं - संघ सूची, राज्य सूची, और समवर्ती सूची, जो केंद्र और राज्य के अधिकारों को स्पष्ट रूप से परिभाषित करती हैं।


6. धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद का समावेश

संविधान सभा ने धर्मनिरपेक्षता (Secularism) और समाजवाद (Socialism) को संविधान (Indian Constitution) में महत्वपूर्ण स्थान दिया। इसका उद्देश्य था कि देश के सभी नागरिकों को समान अवसर मिलें और सरकार किसी विशेष धर्म या वर्ग का समर्थन न करे। धर्मनिरपेक्षता के तहत सभी धर्मों को समान अधिकार और मान्यता दी गई, और समाजवाद के सिद्धांत के तहत समाज के कमजोर वर्गों के उत्थान और आर्थिक असमानता को दूर करने की कोशिश की गई।


7. संविधान की लचीलापन

संविधान सभा ने भारतीय संविधान (Indian Constitution) को एक ऐसा दस्तावेज बनाया, जिसे समय और परिस्थितियों के अनुसार बदला जा सके। इसके लिए संविधान (Indian Constitution) में संशोधन की व्यवस्था की गई। अनुच्छेद 368 के तहत संविधान (Indian Constitution) में संशोधन करने का प्रावधान दिया गया, ताकि यह बदलते समय की आवश्यकताओं के अनुसार लचीला बना रहे।


8. स्वतंत्रता और समानता की नींव रखना

संविधान सभा ने यह सुनिश्चित किया कि भारत का संविधान (Indian Constitution) प्रत्येक व्यक्ति के लिए स्वतंत्रता और समानता की गारंटी प्रदान करे। इसमें जाति, धर्म, लिंग, और भाषा के आधार पर किसी भी प्रकार के भेदभाव का निषेध किया गया। यह सुनिश्चित किया गया कि हर व्यक्ति को न्याय, स्वतंत्रता, समानता और अवसरों की समानता प्राप्त हो।


निष्कर्ष

संविधान सभा की भूमिका भारतीय लोकतंत्र और गणराज्य की नींव रखने में अत्यधिक महत्वपूर्ण थी। इसने भारतीय समाज की विविधता और जरूरतों को ध्यान में रखते हुए एक ऐसा संविधान (Indian Constitution) तैयार किया, जो न केवल नागरिकों के अधिकारों और कर्तव्यों की रक्षा करता है, बल्कि देश को एक स्थिर और प्रगतिशील दिशा में आगे ले जाता है। भारतीय संविधान (Indian Constitution) आज भी देश के शासन का आधार है और संविधान सभा की दूरदर्शिता और योगदान का प्रत्यक्ष परिणाम है।


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